सबसे बड़े हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस की इन चौपाईयों में लिखा है क्रोध कितना विनाशकारी

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सबसे बड़े हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस की इन चौपाईयों में लिखा है क्रोध कितना विनाशकारी

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ऐसे कई लोग है जिन्हें अधिक क्रोध यानी गुस्सा आता है जो उनकी बर्बाद और अपनो से दूरी का मुख्य कारण भी बनता है क्रोध के दुष्प्रभाव जीवन में काफी होते है इसकी वजह से मानव जीवन तक बर्बाद हो जाता है। क्रोण के कारण ही मनुष्य बिल्कुल अकेला हो जाता है जीवन निराशाओं से भर जाता है क्रोध का जिक्र सबसे बड़े हिंदू धर्म ग्रंथ श्री रामचरितमानस में भी किया गया है इसमें बताया गया है कि क्रोध मनुष्य के लिए अच्छा नहीं है।

क्रोध विनाश का कारण बनता है और व्यक्ति को हमेशा ही परेशानियों व दुखों से ​घेरे रखता है तो आज हम अपने इस लेख द्वारा रामचरितमानस की उन चौपाईयों के बारे में बात करेंगे जिसमें क्रोध के बारे में कई अहम बातें बताई गई हैं तो आइए जानते हैं।

रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने क्रोध को लेकर लिखा है

क्रुद्धः पापं न कुर्यात् कः क्रृद्धो हन्यात् गुरूनपि ।

क्रुद्धः परुषया वाचा नरः साधूनधिक्षिपेत् ॥

कः क्रुद्धः पापं न कुर्यात्, क्रृद्धः गुरून् अपि हन्यात्, क्रुद्धः नरः परुषया वाचा साधून् अधिक्षिपेत् ।

रामचरितमानस लिख चौपाईयों द्वारा तुलसीदास जी कहते हैं क्रोध करने वाले मनुष्य पापकर्म अधिक करते हैं पुण्य के कार्यों से वो हमेशा ही दूर रहते हैं क्रोध में मनुष्य बड़े और पूज्य लोगों तक को मार डालता है।

ऐसे मनुष्य अपशब्दों का उपयोग अधिक करते हैं और साधुजनों पर भी निराधार आक्षेप लगाते हैं कहा गया है कि अगर क्रोध पर काबू नहीं रखा गया हो यह व्यक्ति को बर्बाद कर देता है । क्रोध करने से आपके स्वास्थ्य को भी हानि होती है और इसी के कारण मनुष्य को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है मनुष्य का क्रोध उसके जीवन को पूरी तरह से अस्त व्यसत कर देता है।

जिसकी वजह से रिश्तों में भी कड़वाहट आ जाती है और जीवन में बहुत कुछ खो देते हैं कहते हैं कि क्रोध में बोला गया हर एक शब्द जहरीला होता है जिसकी वजह से आपके जीवन की प्यारी बातें और अच्छा व्यवहार पल भर में समाप्त हो जाता है । मनुष्य को सभी प्रिय लोगों से दूर कर विरोधी बना देता है इसलिए मनुष्य को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए वरना वो केवल और केवल अपना ही नुकसान करता है।