ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में आज भी धड़कता है श्रीकृष्ण का हृदय, जाने क्या है इसका रहस्य

Jagannath Temple: हिंदू धर्म में चार धामों की यात्रा का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि चार धाम की यात्रा से ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं. इन चारों धामों में पुरी धाम के भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का इतिहास बड़ा ही रोचक है. सभी मंदिरों में भगवान की सुंदर झांकी और मूर्तियां मिलती हैं, लेकिन भगवान जगन्नाथ के मंदिर की मूर्तियां अधूरी हैं. आइये जानते हैं जगन्नाथ मंदिर का रोचक तथ्यों से भरा इतिहास.
किसने बनवाया जगन्नाथ मंदिर
मत्स्य पुराण और ब्रह्म पुराण में श्रीकृष्ण के ही भगवान जगन्नाथ होने के प्रमाण मिलते हैं. कहते हैं कि मालवा के राजा इंद्रद्युमन श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे. उनकी भक्ति से खुश होकर श्रीकृष्ण ने राजा से नदी में बह रहे पेड़ के लट्ठे से अपनी और अपने भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाकर मंदिर में रखने का आदेश दिया. राजा ने श्रीकृष्ण की बात मानकर लट्ठे से मूर्तियां बनवाने का काम शुरू किया, लेकिन कोई भी कारीगर मूर्तियां नही बना पा रहा था.
इस कारण अधूरी रहीं मूर्तियां
पुराणों के अनुसार, जब सभी कारीगरों ने मना कर दिया तब भगवान विश्वकर्मा बूढ़े आदमी का भेष बना कर स्वयं मूर्तियां बनाने पहुंच गए. लेकिन विश्वकर्मा ने मूर्तियां बनाने के लिए राजा इंद्रद्युमन के सामने एक शर्त रखी कि जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती, तब तक कोई भी उनके कमरे में नहीं आयेगा. राजा ने शर्त मान ली. काफी दिनों तक कमरे में हथौड़ी और छैनी की आवाज आती रहीं.
एक दिन कमरे से आवाज आना बंद हो गई और राजा ने कमरा खोल दिया. राजा ने देखा कि कमरे में भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के हाथों और पैरों की उंगलियां नहीं हैं और सुभद्रा के हाथ-पैर ही नहीं हैं. इससे राजा बहुत दुःखी हुए, तब श्रीकृष्ण ने सपने में आकर राजा से कहा कि मंदिर में इसी रूप में मूर्तियां रखवा दे. इसके बाद राजा ने वैसी ही मूर्तियों को मंदिर में रखवाया और आमजन के लिए मंदिर को खोल दिया गया.