हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्भुत संगम: इस मजार पर होली पर मिटती हैं बीमारियां, दूर-दूर से आते हैं मरीज

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हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्भुत संगम: इस मजार पर होली पर मिटती हैं बीमारियां, दूर-दूर से आते हैं मरीज

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Photo Credit: Ram Mishra, Amethi


राम मिश्रा की रिपोर्ट...

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और भगवान राम की नगरी अयोध्या के निकट बसे बाराबंकी जनपद में होली का त्योहार एक अनूठे तरीके से मनाया जाता है। यहां के सुबेहा क्षेत्र के गुलामाबाद गांव में स्थित सूफी संत गुलाम शाह की मजार पर होली के अवसर पर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग एकजुट होकर न केवल मत्था टेकते हैं, बल्कि होलिका दहन में भी भाग लेते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और यहां की होली की विशेषता यह है कि इसमें धार्मिक आस्था के साथ-साथ चिकित्सकीय महत्व भी जुड़ा हुआ है।

गुलामाबाद गांव में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन की परंपरा बड़े ही विधि-विधान से संपन्न की जाती है। दोपहर के बाद से ही लोग होलिका में अग्नि प्रज्वलित होने का इंतजार करने लगते हैं और शाम होते-होते हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां एकत्रित हो जाते हैं। यह केवल स्थानीय लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आसपास के जिलों से ही नहीं, अन्य राज्यों से भी लोग इस अवसर पर यहां आते हैं।

गुलाम शाह की कहानी और होलिका दहन का इतिहास

किंवदंती के अनुसार, गुलामाबाद गांव में एक प्रसिद्ध फकीर रहते थे, जिनका नाम गुलाम शाह था। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। वह फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन करवाते थे। माना जाता है कि गुलाम शाह के नाम पर ही इस गांव का नाम गुलामाबाद पड़ा। उनके द्वारा शुरू की गई होलिका दहन की परंपरा आज भी जारी है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां की होलिका की अग्नि की ताप से असाध्य रोगियों को राहत मिलती है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग यहां होलिका तापने आते हैं। विशेष रूप से मिरगी, कुष्ठ रोग और सफेद दाग जैसे रोगों से पीड़ित लोग यहां आते हैं और माना जाता है कि होलिका की आंच से ये रोग ठीक हो जाते हैं।

जड़ी-बूटी का चमत्कार और रोगियों को मिलने वाला लाभ

गुलामाबाद की होली का एक और महत्वपूर्ण पहलू है वहां दी जाने वाली जड़ी-बूटी। लोगों का मानना है कि कुम्हार जाति के एक श्रद्धालु की सेवा से प्रसन्न होकर फकीर गुलाम शाह ने उसे एक ऐसी जड़ी-बूटी बताई थी, जिसे पान में रखकर खाने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। इस दवा को लेने के साथ होली तापना अनिवार्य माना जाता है। आज भी उसी परिवार के वंशज फाल्गुन पूर्णिमा को पान में यह दवा देते हैं।

UPUKLive के लिए राम मिश्रा ने 2018 में ग्राउण्ड रिपोर्टिंग करते हुए यहाँ के निवासियों व अलग अलग सूबे से आये हुए श्रद्धालुओं से बात की थी। 

गांव के निवासी शत्रोहन प्रसाद मिश्र के अनुसार, यह मजार कई वर्षों से स्थित है और यहां न केवल जनपद से, बल्कि अलग-अलग प्रदेशों से भी लोग आते हैं। उनकी जानकारी में लगभग 500 मरीजों को यहां लाभ पहुंचा है। यह आंकड़ा इस स्थान की लोकप्रियता और विश्वसनीयता को दर्शाता है।

दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु और उनके अनुभव

इंदौर से आए एक श्रद्धालु बलराम ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनके एक परिचित की बेटी को दौरे की बीमारी थी, जो यहां आने के बाद पूर्णतया ठीक हो गई। इसी को देखते हुए वे भी अपनी बेटी को यहां लेकर आए हैं। इसी तरह, दिल्ली से आए संजय सिंह ने बताया कि उनके बच्चे को भी दौरे की बीमारी है। उनके एक परिचित ने उन्हें यहां भेजा, क्योंकि उनका एक बच्चा यहां आने से ठीक हो गया था। वे भी इसी विश्वास से प्रेरित होकर अपने बीमार बच्चे को लेकर आए हैं।

यह केवल कुछ उदाहरण हैं, लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो अपने रोगों से मुक्ति पाने के लिए हर साल गुलामाबाद की होली में शामिल होते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि एक प्रकार का अनौपचारिक चिकित्सा केंद्र भी बन गया है, जहां लोग अपने असाध्य रोगों का इलाज करवाने आते हैं।

सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक

गुलामाबाद की होली सांप्रदायिक सद्भाव का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक साथ मिलकर होली का त्योहार मनाते हैं। यह स्थान धार्मिक सहिष्णुता और एकता का प्रतीक बन गया है, जहां लोग धर्म से ऊपर उठकर मानवता को प्राथमिकता देते हैं।

इस प्रकार, बाराबंकी के गुलामाबाद गांव में मनाई जाने वाली होली न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सांस्कृतिक विरासत, चिकित्सकीय महत्व और सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा संगम भी है। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का प्रमाण देती रहेगी।

होली 2025: गुलामाबाद में तैयारियां जोरों पर

आगामी होली 2025 के लिए गुलामाबाद में तैयारियां जोरों पर हैं। इस वर्ष होली 14 मार्च को पड़ रही है, और स्थानीय प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। अनुमान है कि इस वर्ष पिछले वर्षों की तुलना में अधिक संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे। स्थानीय लोगों ने भी अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं, ताकि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

गुलामाबाद की इस अनोखी होली का संदेश है - धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करना और एक-दूसरे के साथ प्रेम और सद्भाव से रहना। यह परंपरा हमें सिखाती है कि विविधता में एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।