पानी में ब्रेड डुबोकर पाले बच्चे, रहने को छत नहीं, मुगल वंशज की जिंदगी का सच

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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पानी में ब्रेड डुबोकर पाले बच्चे, रहने को छत नहीं, मुगल वंशज की जिंदगी का सच

Razia Sultana

Photo Credit: Social Media


रजिया सुल्ताना बेगम की कहानी किसी किताब के पन्नों से निकली प्रतीत होती है, लेकिन यह हकीकत है। वह मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर के परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पति मिर्जा बेदार बख्त, जो बादशाह के पड़पोते थे, के साथ उनकी शादी 1965 में हुई थी। उस समय रजिया महज 12 साल की थीं। लखनऊ में जन्मीं और कोलकाता में पली-बढ़ीं रजिया की जिंदगी आज एक ऐसी सैर कर रही है, जहां शाही रुतबा सिर्फ यादों में बाकी है।

शाही खानदान, मगर जिंदगी की कठिन राहें

रजिया की जिंदगी कभी सपनों जैसी नहीं रही। शादी के बाद वह अपने पति के साथ एक साधारण जीवन जीने को मजबूर हुईं। आज वह दिल्ली की तंग गलियों में एक छोटे से किराए के मकान में रहती हैं। वह बताती हैं कि कई बार उनके पास बच्चों के लिए खाना तक नहीं होता था। "कभी-कभी मैं पानी में ब्रेड डुबोकर बच्चों को खिलाती थी," रजिया ने आंखों में आंसू लिए बताया। यह सुनकर कोई भी सोच में पड़ जाए कि मुगल वंश की बहू को ऐसी हालत में क्यों जीना पड़ रहा है?

लालकिला: यादों का आलम, मगर टिकट की जरूरत

मुगल सल्तनत का प्रतीक रहा लालकिला आज रजिया के लिए सिर्फ एक पर्यटक स्थल है। वह कहती हैं, "मैं जब भी लालकिला देखने जाती हूं, मुझे टिकट खरीदना पड़ता है। यह वही जगह है, जहां मेरे पूर्वजों ने हुकूमत की थी।" यह बात उनके दिल को कितना चोट पहुंचाती होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। रजिया की आवाज में गर्व और दर्द दोनों झलकते हैं। वह अपने खानदान की विरासत को संजोए रखना चाहती हैं, लेकिन हालात उनके खिलाफ हैं।

बच्चों का पालन-पोषण: मुश्किलों से भरा सफर

रजिया ने अपने बच्चों को बड़ा करने के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया। उनके पास न तो पैसा था, न ही कोई स्थायी आय। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी। वह अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की कोशिश करती रहीं। आज उनके बच्चे अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं, लेकिन रजिया अकेलेपन से जूझ रही हैं। वह कहती हैं, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि जिंदगी इतनी मुश्किल होगी। लेकिन मैं अब भी उम्मीद नहीं छोड़ती।"

एक अपील: इतिहास को जिंदा रखने की गुहार

रजिया सुल्ताना बेगम की कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उस इतिहास की भी है, जो धीरे-धीरे वक्त की धूल में खो रहा है। वह चाहती हैं कि लोग उनके खानदान की विरासत को याद रखें। वह सरकार से भी मदद की उम्मीद करती हैं ताकि वह सम्मान के साथ जी सकें। उनकी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने इतिहास को उस सम्मान के साथ संरक्षित कर पा रहे हैं, जिसका वह हकदार है?