एयर होस्टेस से साध्वी बनने तक: लाखों की नौकरी छोड़ महाकुंभ में क्यों पहुंची ये लड़की?

प्रयागराज के महाकुंभ मेले में इस बार आध्यात्मिकता के साथ-साथ सोशल मीडिया का रंग भी चढ़ा हुआ है। इसी कड़ी में एक नया नाम सामने आया है—डिजा शर्मा। यह नाम आजकल साध्वी के रूप में चर्चा में है, लेकिन डिजा का सफर आम लोगों से अलग है। वह एक एयर होस्टेस रह चुकी हैं, जिन्होंने अपनी चमकदार यूनिफॉर्म और उड़ान भरते हुए जीवन को पीछे छोड़कर भगवा वस्त्र धारण कर लिए।
उनकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तूफान की तरह वायरल हो रहे हैं, जहाँ वह रुद्राक्ष की मालाओं, चंदन के तिलक और भगवा चोले में नज़र आ रही हैं।डिजा शर्मा पहले स्पाइसजेट एयरलाइंस में एयर होस्टेस थीं। उनका जीवन चमक-दमक और यात्राओं से भरा हुआ था, लेकिन छह महीने पहले उनकी माँ का अचानक निधन हो गया। इस घटना ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। वह बताती हैं, "माँ के जाने के बाद मैंने महसूस किया कि दुनिया की सारी चकाचौंध बेमानी है। मन एक अजीब सी खालीपन से भर गया।" यही वह पल था जब उन्होंने आध्यात्मिक राह चुनने का फैसला किया।महाकुंभ में पहुँचकर डिजा ने संतों से मुलाकात की और साध्वी बनने की इच्छा जताई।
हालाँकि, कुछ संतों ने उनकी उम्र को देखते हुए यह कहकर मना कर दिया कि अभी वह इस राह के लिए तैयार नहीं हैं। पर डिजा हार मानने वालों में से नहीं। उन्होंने कहा, "मैंने साफ़ कह दिया कि मैं किसी प्रचार या शोहरत के लिए यहाँ नहीं आई। मेरा मकसद सिर्फ़ अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनना है।"उनकी इस जिद्द ने उन्हें महाकुंभ के मेले में एक अलग ही पहचान दिला दी। जहाँ भी वह जाती हैं, लोगों की भीड़ उनके पीछे हो जाती है। सेल्फी लेने की होड़ में लोग उन्हें घेर लेते हैं। कुछ यूट्यूबर्स ने उनके इंटरव्यू भी किए, जिनमें उन्होंने हाल ही में चर्चा में रही साध्वी हर्षा रिछारिया का जिक्र करते हुए कहा, "मैं उनकी तरह नहीं बनना चाहती। वह एक्ट्रेस और इन्फ्लुएंसर हैं, मैं सिर्फ़ अपनी आत्मा की आवाज़ पर चल रही हूँ।"
यह बयान सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियाँ बटोर रहा है। कुछ लोग उनकी सच्चाई की तारीफ़ कर रहे हैं, तो कुछ उन पर दिखावे का आरोप लगा रहे हैं। डिजा इन आरोपों को नकारते हुए कहती हैं, "मेकअप या कपड़े बाहरी चीजें हैं। असली साधना तो मन के भीतर होती है। मैंने अपने अंदर के अंधेरे को दूर करने के लिए यह रास्ता चुना है।"
महाकुंभ में डिजा की मौजूदगी ने एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है—क्या आज की युवा पीढ़ी वाकई आध्यात्म की तलाश में है, या फिर सोशल मीडिया की चमक इस पर भारी पड़ रही है? डिजा जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि कुछ लोगों के लिए यह सफर सच्चाई से जुड़ा है। वहीं, हर्षा रिछारिया जैसे केसों ने संदेह पैदा किया है। डिजा इस पर कहती हैं, "हर इंसान की यात्रा अलग होती है। मैं किसी पर सवाल नहीं उठाती, बस अपनी राह पर चलती हूँ।"उनकी इस यात्रा में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। साध्वी बनने की प्रक्रिया में उन्हें कड़े नियमों का पालन करना होगा—सादगी, तपस्या और समाज से दूरी। डिजा मानती हैं कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन वह तैयार हैं।
उनके शब्दों में, "जब आपका इरादा पक्का हो, तो हर मुश्किल राह आसान लगने लगती है। मैंने अपने भीतर की शक्ति को पहचान लिया है।"महाकुंभ जैसे आयोजन हमेशा से समाज के लिए आईना रहे हैं। यहाँ कुछ लोग आत्मशुद्धि के लिए आते हैं, तो कुछ ट्रेंड के चलते। डिजा शर्मा का मामला दोनों पहलुओं को छूता है। एक तरफ़ उनकी व्यक्तिगत त्रासदी और आध्यात्मिक खोज है, तो दूसरी ओर सोशल मीडिया का दबाव। फिलहाल, उनकी लोकप्रियता से साफ़ है कि लोग उनकी सच्चाई में विश्वास करना चाहते हैं।