भगदड़ में फँसे हिंदू भक्तों को मुस्लिमों ने बचाया: मस्जिदों में बनाए अस्थायी घर, बाँटे कंबल और भोजन!

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29 जनवरी 2025 की सुबह, प्रयागराज के संगम नोज पर मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर जुटे करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच अचानक भगदड़ मच गई। रात के अंधेरे में, संगम नोज पर बने बैरिकेड्स टूट गए, और भीड़ का दबाव इतना तीव्र था कि लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। इस अराजकता में 30 लोगों की जान चली गई, जबकि 60 से अधिक घायल हुए। घटनास्थल पर बिखरी चप्पलें, टूटे सामान और खून के निशान इस त्रासदी की दर्दनाक दास्तान बयां कर रहे थे।
महाकुंभ की यह घटना भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति की ताकत को रेखांकित करती है। जब प्रशासनिक तंत्र चरमरा गया, तो आम नागरिकों ने मानवता की मिसाल पेश की। यही वो भारत है जहाँ मुसीबत के वक्त मज़हबी दीवारें टूट जाती हैं और इंसानियत की मशाल जल उठती है। आने वाली पीढ़ियाँ इस घटना को याद रखेंगी कि कैसे प्रयागराज की गलियों में एक रात को मुस्लिमों ने हिंदुओं को अपना बनाया और साझी विरासत को ज़िंदा रखा। यह कहानी सिर्फ़ एक हादसे की नहीं, बल्कि उस साझी आस्था की है जो भारत की धड़कन है। जहाँ त्रासदी ने जिंदगियाँ छीनी, वहीं मानवता ने नई उम्मीदें बोईं। यही सबक है कि संकट के पलों में इंसानियत ही सच्चा धर्म होती है।
इस भयावह हादसे के बाद, जब हज़ारों श्रद्धालु रास्ता भटककर सड़कों पर असहाय हो गए, तो प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने मिसाल कायम की। जनसेनगंज, हिम्मतगंज, खुल्दाबाद और चौक जैसे इलाकों के मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों, मस्जिदों, दरगाहों और इमामबाड़ों के दरवाजे खोल दिए। करीब 25,000 से अधिक थके-हारे श्रद्धालुओं को रात भर के लिए सुरक्षित पनाहगाह मिला। मुस्लिम युवाओं ने सड़कों पर लंगर लगाकर गर्म खाना और चाय बाँटी, जबकि महिलाओं ने बुजुर्गों और बच्चों को कंबल ओढ़ाए।
"हमारे लिए इंसानियत सबसे बड़ा धर्म"
खुल्दाबाद सब्ज़ी मंडी मस्जिद के ट्रस्टी मोहम्मद इरशाद ने बताया, "उस रात हमने देखा कि लोग भूखे-प्यासे और ठंड से काँप रहे थे। हमने सोचा, अगर हमारे घर में भगवान की रोशनी है, तो उसे बाँटने में क्या हर्ज है?" एक अन्य स्वयंसेवक फरहान आलम ने कहा, "जब कोई मुसीबत में हो, तो उसका मज़हब नहीं, उसकी मदद देखी जाती है।"सरकारी कोशिशों के बीच एक सवाल
हालाँकि यूपी सरकार ने घटना के बाद 25 लाख रुपये के मुआवजे और जाँच आयोग बनाने की घोषणा की, लेकिन प्रशासन की तैयारियों पर सवाल उठे। विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि भीड़ प्रबंधन में लापरवाही हुई। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि अदालत का ध्यान पहले से चल रही जाँच को प्रभावित नहीं करना चाहिए।इतिहास में दर्ज हो गई एकता की मिसाल
यह घटना न केवल एक त्रासदी, बल्कि साम्प्रदायिक सद्भाव का जीवंत उदाहरण बन गई। जहाँ एक ओर कुंभ मेले में मुस्लिमों के व्यवसायिक बहिष्कार की खबरें आईं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने संकट की घड़ी में मानवता को सर्वोपरि रखा। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियोज़ में देखा जा सकता है कि कैसे मस्जिदों में हिंदू श्रद्धालु आराम कर रहे हैं और साथ मिलकर प्रार्थनाएँ हो रही हैं।महाकुंभ की यह घटना भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति की ताकत को रेखांकित करती है। जब प्रशासनिक तंत्र चरमरा गया, तो आम नागरिकों ने मानवता की मिसाल पेश की। यही वो भारत है जहाँ मुसीबत के वक्त मज़हबी दीवारें टूट जाती हैं और इंसानियत की मशाल जल उठती है। आने वाली पीढ़ियाँ इस घटना को याद रखेंगी कि कैसे प्रयागराज की गलियों में एक रात को मुस्लिमों ने हिंदुओं को अपना बनाया और साझी विरासत को ज़िंदा रखा। यह कहानी सिर्फ़ एक हादसे की नहीं, बल्कि उस साझी आस्था की है जो भारत की धड़कन है। जहाँ त्रासदी ने जिंदगियाँ छीनी, वहीं मानवता ने नई उम्मीदें बोईं। यही सबक है कि संकट के पलों में इंसानियत ही सच्चा धर्म होती है।