एक रात, 70 मर्द: दिल्ली की इस औरत की कहानी सुनकर कांप जाएगी आपकी रूह!

मैं एक सेक्स वर्कर हूं। ये शब्द सुनते ही लोग नजरें फेर लेते हैं, कान बंद कर लेते हैं या फिर मन में एक अजीब सी तस्वीर बना लेते हैं। लेकिन मेरी कहानी वो नहीं जो आप सोच रहे हैं। ये उन रातों की सच्चाई है जो मेरे लिए हर रोज़ एक नया दर्द लेकर आती हैं। दिल्ली का वो रेड लाइट एरिया, जिसे लोग गरस्टिन बास्टियन रोड या जीबी रोड कहते हैं, मेरे लिए घर भी है और जेल भी। यहाँ की गलियां, यहाँ की टूटी-फूटी सीढ़ियां और वो छोटे-छोटे कमरे मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं। एक रात में 70 मर्दों के साथ वक्त गुजारना मेरी मजबूरी थी, मेरा फैसला नहीं। आज मैं अपनी आपबीती आपके सामने रख रही हूं, शायद मेरे दर्द को कोई समझ सके।
कैसे पहुंची मैं इस दुनिया में
मेरा बचपन गांव की मिट्टी में बीता। घर में गरीबी थी, मां-बाप दिन-रात मेहनत करते थे ताकि हम भाई-बहनों की दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सके। लेकिन एक दिन सब बदल गया। एक दूर के रिश्तेदार ने नौकरी का झांसा देकर मुझे शहर लाने का वादा किया। मैं खुश थी कि अब घर की मदद कर सकूंगी। मगर वो मुझे दिल्ली की इन अंधेरी गलियों में छोड़ गया। मुझे बेच दिया गया। उस दिन मेरी उम्र महज 16 साल थी। शुरू में मैं रोती थी, चीखती थी, लेकिन यहाँ कोई सुनने वाला नहीं था। धीरे-धीरे मजबूरी ने मुझे यहाँ की जिंदगी का हिस्सा बना दिया।
एक रात और उसका बोझ
वो रात मेरे लिए कभी न भूलने वाली थी। आम दिनों में 5-10 लोग आते हैं, लेकिन उस रात भीड़ कुछ ज्यादा थी। एक के बाद एक, बिना रुके, बिना थके। 70 मर्द। हर चेहरा एक जैसा लगता था—बेरहम, ठंडा और खाली। मेरे लिए वो इंसान नहीं, बस एक सौदा थे। मेरे शरीर का दर्द, मेरी थकान, मेरी सिसकियां—किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता था। वो छोटा सा कमरा, जिसमें हवा भी ठीक से नहीं आती, मेरे लिए उस रात एक कब्र से कम नहीं था। सुबह होने तक मैं टूट चुकी थी, लेकिन यहाँ टूटने का हक भी किसी को नहीं है। अगली रात फिर वही कहानी शुरू हो जाती है।
जीबी रोड की अनकही सच्चाई
जीबी रोड सिर्फ एक जगह नहीं, एक ऐसी दुनिया है जहां इंसानियत दम तोड़ देती है। यहाँ की सीढ़ियां चढ़ते वक्त पैर कांपते हैं, लेकिन ऊपर पहुंचने पर दिल और सांसें दोनों थम जाती हैं। दिन में नीचे की दुकानें चलती हैं, लेकिन रात होते ही ये गलियां रंग-बिरंगी साड़ियों और चेहरों से भर जाती हैं। लोग इसे मशहूर कहते हैं, लेकिन यहाँ रहने वालों के लिए ये मशहूरी एक अभिशाप है। यहाँ हर औरत की अपनी कहानी है—कोई बेची गई, कोई भूख से मजबूर हुई, तो कोई धोखे का शिकार हुई। हमारी हंसी, हमारे आंसू, सब कुछ बिकता है। यहाँ की हवा में सिर्फ गुलाल नहीं, बल्कि दर्द और लाचारी की गंध भरी है।
सपनों का मरना और जिंदगी का ढोंग
कभी मैं भी सपने देखा करती थी। सोचती थी कि एक दिन अपने लिए एक छोटा सा घर बनाऊंगी, अपने परिवार को वापस लाऊंगी। लेकिन अब वो सपने धुंधले पड़ गए हैं। यहाँ हर दिन एक नई लड़ाई है—बीमारी से, भूख से, और सबसे ज्यादा समाज की नजरों से। लोग हमें गंदा समझते हैं, लेकिन कोई ये नहीं पूछता कि हम यहाँ क्यों हैं। मेरी तरह यहाँ की हर औरत अपने बच्चों को इस दुनिया से दूर रखना चाहती है, लेकिन मजबूरी हमें हर बार हरा देती है। हमारी जिंदगी एक ढोंग बनकर रह गई है, जहां हर रात एक नया चेहरा पहनना पड़ता है।
क्या कभी बदलेगी ये जिंदगी?
कई बार सोचती हूं कि क्या मेरी जिंदगी में भी कोई सुबह आएगी? सरकारें आती हैं, वादे करती हैं, लेकिन हमारी गलियों में कुछ नहीं बदलता। कुछ लोग मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, पर वो भी अधूरी कोशिशों में सिमट जाते हैं। मैं चाहती हूं कि मेरी कहानी सिर्फ एक कहानी न रहे। शायद इसे पढ़कर कोई मेरे दर्द को समझे, कोई मेरी आवाज़ बने। मैं बस इतना चाहती हूं कि एक दिन ये रातें खत्म हों और मैं खुली हवा में सांस ले सकूं। क्या ये मुमकिन है? शायद हां, शायद नहीं।