भारत के इस शहर को कहा जाता है 'कंडोम' की राजधानी, हैरान करने वाली है वजह

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. Trending

भारत के इस शहर को कहा जाता है 'कंडोम' की राजधानी, हैरान करने वाली है वजह

Condoms

Photo Credit: Social Media


महाराष्ट्र का ऐतिहासिक शहर औरंगाबाद आज अपनी एक नई पहचान के लिए दुनियाभर में मशहूर हो चुका है। यह शहर अब सिर्फ़ अजंता-एलोरा की गुफाओं या ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए नहीं, बल्कि "कंडोम उत्पादन" के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। देश के कुल 10 प्रमुख कंडोम निर्माताओं में से 6 कंपनियाँ यहीं स्थित हैं, जो हर महीने 10 करोड़ से अधिक कंडोम का उत्पादन करती हैं। यहाँ से यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशियाई देशों सहित 36 राष्ट्रों को निर्यात किया जाता है।

कैसे बना औरंगाबाद कंडोम उद्योग का गढ़?

इसकी शुरुआत 1991 में हुई जब रेमंड ग्रुप ने "कामसूत्र" ब्रांड लॉन्च किया। धीरे-धीरे अन्य कंपनियाँ जैसे सेफगार्ड कॉन्ट्रासेप्टिव्स और यूनिवर्सल प्रोफिलैक्टिक ने यहाँ अपने प्लांट स्थापित किए। आज यहाँ नाइट राइडर्स, ब्लैक पैंथर जैसे ब्रांड्स के साथ 40 से अधिक फ्लेवर वाले कंडोम बनाए जाते हैं—स्ट्रॉबेरी से लेकर चॉकलेट तक। इन कंपनियों का सालाना टर्नओवर 300-400 करोड़ रुपये तक पहुँच गया है, जिससे 30,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

वैश्विक बाजार में छाई औरंगाबाद की धाक

औरंगाबाद में बने कंडोम की गुणवत्ता इतनी उच्च है कि यहाँ के उत्पादों को ISO 4074 और WHO मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। जर्मन तकनीक से लैस यहाँ के प्लांट्स में हर कंडोम इलेक्ट्रॉनिक टेस्टिंग से गुजरता है। यही वजह है कि चीन जैसे देश भी भारत से कंडोम आयात करते हैं—कामसूत्र ब्रांड अकेले 36 करोड़ कंडोम सालाना चीन भेजता है। दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देशों की सरकारें भी यहाँ से सीधे ऑर्डर देती हैं।

अर्थव्यवस्था को मिली नई दिशा

पहले "ऑटो हब" के रूप में पहचान रखने वाले इस शहर ने स्वास्थ्य उद्योग में अपनी किस्मत आजमाई। केरल और तमिलनाडु से लाए जाने वाले प्राकृतिक रबर के उपयोग से यहाँ के कारखाने पर्यावरण अनुकूल तरीके से काम करते हैं। सरकारी नीतियों और कुशल मजदूरों के सहयोग से यह उद्योग तेजी से फैला—आज यह शहर देश के कुल कंडोम निर्यात का 60% हिस्सा अकेले संभालता है।

युवाओं के लिए बना रोजगार का आधार

इस उद्योग ने न केवल अर्थव्यवस्था को गति दी, बल्कि युवाओं को भी नई दिशा दी। यहाँ काम करने वाले 20-22 साल के युवा टेक्नीशियन से लेकर क्वालिटी चेक तक की भूमिकाओं में हैं। महिला कर्मचारियों की भागीदारी भी बढ़ी है—पैकेजिंग से लेकर लेबलिंग तक के कामों में उनकी उपस्थिति ने सामाजिक बदलाव की नई कहानी लिखी है।

नवाचार और टेक्नोलॉजी का अनूठा मेल

औरंगाबाद की कंपनियाँ नवीनतम तकनीक का उपयोग करती हैं। जर्मनी से आयातित डिपिंग मशीनें रबर को पतली परतों में ढालती हैं, जबकि ऑटोमेटेड सेलिंग मशीनें प्रति मिनट 300 कंडोम पैक करती हैं। "ग्लो-इन-द-डार्क" और "एक्स्ट्रा टाइम" जैसे इनोवेटिव प्रोडक्ट्स युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

हालाँकि, इस उद्योग को सामाजिक रूढ़ियों से जूझना पड़ता है। कई कर्मचारी अपने काम को छुपाते हैं, परंतु धीरे-धीरे मानसिकता बदल रही है। सरकार ने "स्वस्थ्य भारत" अभियान के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए सब्सिडाइज्ड कंडोम की खरीद बढ़ाई है, जिससे उत्पादन को नई गति मिली है।

औरंगाबाद की यह यात्रा सिर्फ़ उद्योग की कहानी नहीं, बल्कि भारत के विकास की मिसाल है। यहाँ के कारीगरों ने एक ऐसे उत्पाद को गर्व का प्रतीक बना दिया, जिस पर बात करने में लोग हिचकिचाते थे। आज जब यह शहर वैश्विक बाजार में अपना परचम लहरा रहा है, तो यह साबित करता है कि सही नीतियों और मेहनत से कोई भी उद्योग राष्ट्र की पहचान बन सकता है।