ठाकुरद्वारा में धड़ल्ले से चल रहे फर्जी अस्पताल और लैब!
यामीन विकट
ठाकुरद्वारा। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और गैर ज़िम्मेदारी के कारण नगर व क्षेत्र में फ़र्ज़ी अस्पतालों और फ़र्ज़ी लैब का संचालन धड़ल्ले से किया जा रहा है । इस फर्जीवाड़े और मिलीभगत का आलम ये है कि यदाकदा जब कोई छापेमारी की जाती है तो कुछ स्वास्थ्य विभाग के दलालों को पहले ही इसकी सूचना मिल जाती है। अब क्षेत्र भर के लोगों का स्वास्थ्य विभाग से भरोसा उठ गया है और अब वह तेज़ तर्रार उपजिलाधिकारी की ओर इस आशा से देख रहे हैं कि शायद उन्ही के कारण इस फर्जीवाड़े से राहत मिल सकती है।
जी हाँ नगर व पूरे तहसील क्षेत्र में पिछले लंबे समय से स्वास्थ्य विभाग और फ़र्ज़ी अस्पतालों फ़र्ज़ी लेबो के बीच जो खेल चल रहा है वह अब किसी से छिपा नहीं है। एक ओर जंहा फ़र्ज़ी अस्पताल मरीज़ों के लिए खतरा ए जान बने हुए हैं तो वंही दूसरी ओर अवैध रूप से संचालित दर्जनों लैब भी मरीज़ों को उल्टी सीधी रिपोर्ट पकड़ा कर सिर्फ और सिर्फ अपना एक मात्र उल्लू सीधा करने में लगी हैं। इन अवैध लेबो पर यूं तो बड़े बड़े चिकित्सकों और टेक्नीशियन के नाम आपको लिखे दिखाई दे जाएंगे लेकिन असल मे इन लेबो से इन मशहूर टेक्नीशियन या चिकित्सक का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। ऐसा ही मामला कुछ अन्य फ़र्ज़ी अस्पतालों का भी है वँहा भी आपको बड़े बड़े सर्जनों और बड़े बड़े फिजिशियन के नाम बोर्ड पर लिखे हुए दिखाई देंगे लेकिन उनका भी कोई वास्ता इन अस्पतालों से नही निकलेगा। ऐसा नहीं है कि ये बातें जो यंहा हम आपको बता रहे हैं वह स्वास्थ्य विभाग को मालूम नहीं हैं उन्हें इससे भी ज़्यादा मालूम है लेकिन स्वास्थ्य विभाग जानबूझकर इस कृत्य से अनजान बना हुआ क्षेत्र की जनता, सरकार, और पूरे जिले के अन्य आला अधिकारियों को भी धोखे में रखता चला आ रहा है।
बतादें कि ठाकुरद्वारा ही नही अन्य क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य विभाग ने कुछ दलाल पाले हुए हैं जो स्वास्थ्य विभाग के चंद लालची अधिकारियों को सारे फ़र्ज़ी अस्पतालों और फ़र्ज़ी लैब संचालकों से सुविधा शुल्क दिलाने का काम करते हैं। इसके अलावा चर्चा ये भी है किअगर कोई अस्पताल अपनी जांच इन्हें छोड़कर अन्य किसी लैब पर कराता है तो पहले ये अस्पताल संचालक को कमीशन का लालच देकर उसे मनाने का प्रयास करते हैं और अगर वो फिर भी न माने तो अपने स्वास्थ्य विभाग के आकाओं से कहकर उसके यंहा छापा लगवाकर अस्पताल को सीज करा देते हैं। बाद में थक हार कर वो अस्पताल संचालक इन दलालों की शरण में आता है और ये सुविधा शुल्क दिलाकर दो चार दिन में उस अस्पताल को फिर से शुरू करा देते हैं। लंबे समय से यही खेल न केवल चल रहा है बल्कि फल फूल भी रहा है लेकिन अब उपजिलाधिकारी से क्षेत्र के लोगों ने जो उम्मीद बांधी है उससे लगता है कि शायद अब लोगों की ज़िंदगी से खेल रहे इन फ़र्ज़ी अस्पतालों और फ़र्ज़ी लैबो पर कोई अंकुश लगाया जा सकता है।