उप जिला मजिस्ट्रेट के जरिए चुने जनप्रतिनिधि को नोटिस कैसे जारी की : हाईकोर्ट

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उप जिला मजिस्ट्रेट के जरिए चुने जनप्रतिनिधि को नोटिस कैसे जारी की : हाईकोर्ट


उप जिला मजिस्ट्रेट के जरिए चुने जनप्रतिनिधि को नोटिस कैसे जारी की : हाईकोर्ट


-हाईकोर्ट ने सिराथू विधायक पल्लवी के खिलाफ चुनाव आयोग को हुई शिकायत के मामले में जारी नोटिस पर फैसला किया सुरक्षित

प्रयागराज, 23 जून (हि.स.)। सिराथू की विधायक पल्लवी पटेल के निर्वाचन को लेकर हुई शिकायत के मामले में जारी नोटिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्रवाई पर तीखी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि एक चुने प्रतिनिधि के खिलाफ कैसे नोटिस जारी कर दी? वह भी एक उप जिला मजिस्ट्रेट के जरिए। आयोग ने खुद क्यों जांच नहीं की? वह उप जिला मजिस्ट्रेट से क्यों जांच करा रहा है। क्या आयोग का इरादा जनप्रतिनिधि का उत्पीड़न किए जाने का है?

कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता से पूछा कि आयोग एक संवैधानिक संस्था है। उसके पास चुनाव से जुड़े मामले की जांच करने के लिए खुद ही शक्ति है। वह कैसे उप जिला मजिस्ट्रेट को यह काम सौंप सकता है। कोर्ट ने मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर दिया। पल्लवी सिंह पटेल की ओर से दाखिल याचिका पर मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की खंडपीठ कर रही है।

निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश पांडेय पक्ष रख रहे थे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याची के खिलाफ आयोग के समक्ष यह शिकायत आई कि उन्होंने अपने नामांकन के दौरान हलफनामे में आपराधिक मामले की जानकारी छुपाई है। आयोग ने उस शिकायत का संज्ञान लेते हुए उप जिला मजिस्ट्रेट को जांच के आदेश दिए। उप जिला मजिस्ट्रेट ने याची से उनका पक्ष जानने के लिए नोटिस जारी की है।

इस पर कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताते हुए कहा कि एक चुने गए जनप्रतिनिधि के खिलाफ हुई शिकायत की वास्तविकता का पता लगाए बगैर निर्वाचन आयोग ने एडीएम के जरिए कैसे जांच शुरू करा दी। कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग की यह कार्रवाई उत्पीड़नात्मक है। कोर्ट ने कहा कि आयोग एक संवैधानिक निकाय है। उसे चुने गए जनप्रतिनिधियों के मामले में होने वाली शिकायतों के निस्तारण के लिए प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। लेकिन उसने प्रक्रिया का पालन करने की बजाय एक जूनियर लेवल के अधिकारी को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी। जबकि, निर्वाचन आयोग के पास जांच के सारे अधिकार और संसाधन उपलब्ध हैं।

आयोग को पहले शिकायत की वास्तविकता का पता लगाना चाहिए क्योंकि याची ने नामांकन के दौरान अपने हलफनामे पर अपनी पूरी जानकारी दी है। वह रिकॉर्ड खुद चुनाव आयोग के पास है। अगर याची ने आपराधिक मामले की जानकारी छुपाई है तो पुलिस अधीक्षक से इसकी सत्यता का पता लगाया जा सकता है लेकिन नोटिस जारी करना सही नहीं था।

निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि नोटिस जारी करने का अर्थ उत्पीड़न से न लगाया जाए। कोर्ट ने कहा कि आयोग को पहले शिकायत की सत्यता का पता लगाना था। अगर शिकायत सही पाई जाती तो उप चुनाव आयुक्त स्तर के अधिकारी से जांच करानी चाहिए न कि लोवर स्तर के अधिकारी को जांच की जिम्मेदारी दी जाए। जैसा कि आयोग के नियम में प्रक्रिया बनाई गई है।

उधर, विधायक पल्लवी पटेल की अधिवक्ता सरोज यादव की ओर से तर्क दिया गया कि याची के खिलाफ शिकायत एक सियासी साजिस के तहत की गई है। याची 2022 के विधानसभा चुनाव में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को हराकर चुनाव जीती है। इस वजह से उसके खिलाफ इस तरह की शिकायत कर उत्पीड़न किया जा रहा है। हालांकि, कोर्ट ने इस तरह तर्कों को नजरअंदाज किया और पक्षकारों के अधिवक्ताओं को नोटिस जारी कर जांच करने के संदर्भ में दलील पर सुनवाई पूरी की और मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया।

हिन्दुस्थान समाचार/आरएन