हिजाब पहनकर सनातन यात्रा में शामिल हुई अलीशा, जानें क्या है कहानी!

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हिजाब पहनकर सनातन यात्रा में शामिल हुई अलीशा, जानें क्या है कहानी!

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Photo Credit: Social Media


भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में प्रेम और विश्वास की कहानियां हमेशा दिल को छूती हैं। ऐसी ही एक कहानी है मथुरा की अलीशा की, जिसने हिजाब पहनकर सनातन युवा जोड़ों की पदयात्रा में हिस्सा लिया और हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा। आठ महीने पहले हिंदू युवक सचिन से शादी करने वाली अलीशा ने न केवल अपने जीवनसाथी को चुना, बल्कि हिंदू धर्म को भी अपनाया। इस यात्रा में शामिल होकर उन्होंने प्रेम, धर्म और संस्कृति के अद्भुत संगम को दर्शाया। आइए, उनकी इस प्रेरक कहानी और इस पदयात्रा के मकसद को करीब से जानते हैं।

सनातन युवा जोड़ों की पदयात्रा का उद्देश्य

सनातन युवा जोड़ों की पदयात्रा, जिसका नेतृत्व हर्षा रिछारिया कर रही हैं, एक अनोखा प्रयास है। यह यात्रा 21 अप्रैल तक चलेगी और इसका मकसद युवाओं को नशे की लत से मुक्त करना और उन्हें धर्म व संस्कृति के प्रति जागरूक करना है। वृंदावन से शुरू हुई यह यात्रा मथुरा, आगरा, हाथरस, फिरोजाबाद और संभल जैसे शहरों से होकर गुजरेगी। हर्षा रिछारिया, जिन्हें प्रयागराज महाकुंभ के दौरान खूब सुर्खियां मिली थीं, इस यात्रा के जरिए युवाओं को सकारात्मक दिशा दिखाने का संकल्प ले चुकी हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक जागरूकता फैलाती है, बल्कि समाज में सौहार्द और एकता का संदेश भी देती है।

अलीशा की अनोखी प्रेम कहानी

मथुरा की रहने वाली अलीशा की जिंदगी प्रेम और साहस की मिसाल है। छह साल पहले उनकी मुलाकात सचिन से हुई और दोनों के बीच प्यार पनपने लगा। लेकिन अलीशा के परिवार ने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया। फिर भी, अलीशा ने अपने दिल की सुनी और आठ महीने पहले सचिन के साथ कोर्ट मैरिज कर ली। इस दौरान उन्होंने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने का फैसला किया। अलीशा बताती हैं कि प्रेमानंद महाराज के प्रवचनों ने उन्हें नई राह दिखाई। उनके दर्शन और विचारों से प्रेरित होकर अलीशा ने हिंदू धर्म को गले लगाया और अब वह प्रेमानंद महाराज को अपना मार्गदर्शक मानती हैं।

हिजाब के साथ सनातन यात्रा में कदम

पदयात्रा के दौरान अलीशा का हिजाब पहनना चर्चा का विषय बना। जब उनसे इसकी वजह पूछी गई, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि हिजाब उनकी पुरानी आदत है, जिसे वह धीरे-धीरे छोड़ रही हैं। लेकिन यह उनकी पहचान का हिस्सा है और वह इसे अपनी नई यात्रा के साथ जोड़कर चल रही हैं। अलीशा का यह कदम दर्शाता है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी वह अपनी जड़ों को पूरी तरह नहीं भूलीं। उनका यह संतुलन और खुले दिल से नई शुरुआत स्वीकार करना हर किसी के लिए प्रेरणा है।

प्रेम और धर्म का संगम

अलीशा और सचिन की कहानी सिर्फ प्रेम की नहीं, बल्कि विश्वास और समझ की भी है। इस पदयात्रा में शामिल होकर उन्होंने दिखाया कि प्रेम और धर्म एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। अलीशा का कहना है कि वह अपने नए जीवन को पूरी तरह अपनाना चाहती हैं और इस यात्रा के जरिए वह समाज को एकता का संदेश देना चाहती हैं। उनकी कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने दिल की सुनना चाहते हैं, लेकिन सामाजिक बंधनों से डरते हैं।

हर्षा रिछारिया का संदेश

हर्षा रिछारिया ने इस यात्रा को युवाओं के लिए एक नई दिशा देने का मंच बताया। उन्होंने कहा कि नशा और अपराध से दूर रहकर युवा अपनी जिंदगी को सार्थक बना सकते हैं। धर्म परिवर्तन पर उनका कहना है कि यह एक निजी फैसला है और हर किसी को अपनी पसंद का सम्मान करना चाहिए। हर्षा का मानना है कि यह यात्रा न केवल धार्मिक जागरूकता लाएगी, बल्कि समाज में प्रेम और भाईचारे को भी बढ़ाएगी।