चापलूस मीडिया ने बिखेरा इस गांव का जलवा, लेकिन हक़ीक़त से सब बेखबर

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. Uttar Pradesh

चापलूस मीडिया ने बिखेरा इस गांव का जलवा, लेकिन हक़ीक़त से सब बेखबर

चापलूस मीडिया ने बिखेरा इस गांव का जलवा, लेकिन हक़ीक़त से सब बेखबर


विनोद मिश्रा
बांदा।
जल सरंक्षण के मामले में जिले के जखनी गांव का जलवा नेशनल स्तर पर बड़ी चालाकी और कुछ चापलूस मीडिया कर्मियों ऩे ऐसा बिखेरा की राज्य औऱ केंद्र सरकार भेड़ तंत्र की सी चाल में आ गई! हां कुछ काम रचनात्मक है, पर ऐसा भी नहीं की ढिढोरा इस तरह पीटा जाऐ जैसा पीटा जा रहा है, और पुरुस्कार बाटे जा रहें हैं।

कथित जल ग्राम की हकीकत जानने भारत सरकार नीति आयोग के जल सलाहकार अब अविनाश मिश्रा सोमवार को जखनी गांव पहुंचे। यहां किए गए जल संरक्षण के उपायों, मेड़बंदी आदि का जायजा लिया।जखनी गांव में परंपरागत जल संरक्षण के लिए अपनाई गई विधियों को दूसरे राज्यों में मॉडल के रूप में लागू होने की बात कही। वर्षा की बूंद जहां गिरे उसे वहीं रोकें। जिस खेत में जितना पानी होगा, वहां उतनी ही पैदावार बढ़ेगी।

जल सलाहकार ने गांव में भ्रमण कर यहां के किसानों द्वारा बनाए गए मेड़ों को देखा। पानी से भरे गांव के कई तालाब देखें। कुओं का भी जायजा लिया। इस बात पर खुशी जताई कि बिना किसी सरकारी मदद के यहां के किसानों ने अपने श्रम और धन से तालाब, कुओं और परंपरागत जलस्रोतों को बरकरार रखा है।

जल सलाहकार ने बताया की प्रधानमंत्री ने मेड़बंदी और परंपरागत तरीकों से जल संरक्षण के लिए देशभर के प्रधानों को पत्र भेजा है। यह अच्छी बात है कि बुंदेलखंड के किसान दस साल से खेतों में बारिश का पानी रोकने के लिए मेड़बंदी करा रहे हैं। उन्होंने समिति लोगों से मेड़बंदी संबंधी जानकारी साझा की। वहां के परंपरागत जलाशयों आदि को देखा। बताया की देश के अन्य राज्यों में जखनी माडल बनेगा। अब प्रश्न यह उठता हैं की अन्य राज्यों क़ो तो छोड़िए बांदा जिले या बुन्देलखंड जहां न आवश्यता अनुरूप खेत को पानी है औऱ न पेट को ,तो यहां ही जखनी माडल क्यों नहीं विकसित हुआ, क्या यह आश्चर्य और गंभीरता से विचारणीय मुद्दा नहीं हैं। जबकि काफी हद तक वास्तविक स्थिति यही कहावत चरितार्थ करती है की "सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठ। और सरकार कथित सरकारी आकड़ों से गुमराह सी होकर लकीर की फकीर सी बन गई हैं। प्रदेश-देश के सरकारी अफसरान भी जब आते हैं हकीकत की तह में जानें का ईमानदारी का साहस नहीं जुटा पाते। पुरानी रिपोर्ट जो यहां के पूर्व डीएम हीरा लाल जल सरंक्षण के नाम पर गढ़ गये हैं वह जलवा विहीन होने के बाद भी जलवा बिखेर रही हैं।