ल्वांणी गांव के काश्तकारों की आर्थिक मजबूती का आधार बन रहा मत्स्य पालन
देहरादून (उत्तराखंड): गांव के 11 युवाओं ने तैयार किया मत्स्य पालन से आय का मॉडल, युवाओं से प्रेरित होकर ग्रामीण भी करने लगे मत्स्य पालन
जनपद के ल्वांणी गांव में मत्स्य पालन काश्तकारों की आर्थिक मजबूती का आधार बनने लगा है। यहां गांव के 11 युवाओं ने 2019-20 में मत्स्य पालन का कार्य शुरू किया। ऐसे में युवाओं के स्वरोजगार के इस मॉडल से घर बैठे हो रही आय को देख अब क्षेत्र के अन्य ग्रामीण भी मत्स्य पालन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने लगे हैं।
चमोली की नदियों में मिलने वाली ट्राउड मछली का स्वाद के देशभर के मछली के शौकीनों की पहली पसंद है। ऐसे में जनपद के देवाल ब्लॉक के ल्वांणी गांव में वर्ष 2018 में गांव के 11 युवकों ने मोहन सिंह बिष्ट गांववासी के सहयोग से देवभूमि मत्स्यजीवी सहकारिता समिति का गठन किया। समिति के माध्यम से उन्होंने वर्ष 2019-20 में 10 ट्राउड रेस वेज के साथ मत्स्य पालन शुरू किया।
जिससे समिति अब प्रतिवर्ष 4 से 5 लाख की आय अर्जित कर रही है। युवाओं द्वारा अपनाए गए स्वरोजगार के इस मॉडल से प्रेरित होकर वर्तमान में ल्वांणी गांव में जहां अन्य ग्रामीणों की ओर से 20 ट्राउड रेस वेस स्थापित किए गए हैं। वहीं आसपास के गांवों में भी ग्रामीणों ने 40 ट्राउड रेस वेज स्थापित कर लिए गए हैं।
समिति के बेहतर उत्पादन को देखते हुए विपणन की व्यवस्था के लिये जहां जिला प्रशासन ने समिति को पैकिंग प्लांट की सुविधा उपलब्ध कराई है। वहीं मत्स्य विभाग की ओर से समिति को मत्स्य बीज उत्पादन के लिए ट्राउड हैचरी से लाभान्वित किया गया है।
जनपद मत्स्य प्रभारी जगदम्बा कुमार ने बताया कि हैचरी से समिति जनवरी 2025 से बीज का उत्पादन शुरु कर देगी। जिससे समिति को प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख तक की अतिरिक्त आय प्राप्त होने के साथ ही बीज के लिये क्षेत्रीय ग्रामीणों की बाजार पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।
चमोली में मत्स्य पालन से युवाओं को जोड़कर स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। जिसके लिये मत्स्य पालन विभाग की ओर से 24 मत्स्य जीवी सहकारी समितियां गठित कर मत्स्य पालन का कार्य किया जा रहा है। जिनके विपणन से सहकारी समितियों से जुड़े युवाा अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं।
जनपद में मत्स्य पालन को बढावा देने के लिए अन्य युवाओं को भी विभागीय योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। वहीं मछली बीज के लिये ग्रामीणों की बाजारों पर निर्भरता कम करने के लिये मछली बीज हैचरी विकसित भी की जा रही हैं।