नैनीताल में मासूम से दुष्कर्म: आरोपी के घर पर बुलडोजर का खतरा, हाई कोर्ट ने दी राहत

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में बसी नैनीताल की शांति हाल ही में एक दिल दहला देने वाली घटना से भंग हो गई। 12 साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना ने न केवल स्थानीय लोगों को स्तब्ध कर दिया, बल्कि पूरे शहर में आक्रोश की लहर दौड़ गई। इस मामले में आरोपी, 65 वर्षीय मोहम्मद उस्मान, को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन घटना के बाद उठे जनाक्रोश और प्रशासनिक कार्रवाई ने इसे और जटिल बना दिया। इस लेख में हम इस घटना के हर पहलू, नगर पालिका के नोटिस, और हाई कोर्ट के हस्तक्षेप को विस्तार से समझेंगे, ताकि आपको इस संवेदनशील मामले की पूरी जानकारी मिले।
मासूम के साथ हैवानियत: क्या है पूरा मामला?
नैनीताल के मल्लीताल क्षेत्र में 12 अप्रैल को एक 12 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आई। पीड़िता ने बताया कि आरोपी मोहम्मद उस्मान ने उसे 200 रुपये का लालच देकर और चाकू दिखाकर अपनी गाड़ी में बैठाया और इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। बच्ची ने डर के कारण कई दिनों तक यह बात किसी को नहीं बताई, लेकिन बाद में अपनी बड़ी बहन को आपबीती सुनाई। परिवार ने मल्लीताल कोतवाली में शिकायत दर्ज की, जिसके बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को हिरासत में लिया। पुलिस ने पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया और बच्ची का मेडिकल परीक्षण कराया। इस घटना ने शहर में सांप्रदायिक तनाव को जन्म दिया, और स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए।
जनाक्रोश और तोड़फोड़: नैनीताल में अशांति
घटना की खबर फैलते ही नैनीताल की सड़कों पर गुस्साई भीड़ जमा हो गई। हिंदू संगठनों, स्थानीय निवासियों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मल्लीताल थाने का घेराव किया और आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने कुमाऊं कमिश्नर को ज्ञापन सौंपकर फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग की। कुछ उग्र प्रदर्शनकारियों ने दुकानों में तोड़फोड़ की और एक मस्जिद पर पथराव किया, जिससे शहर में तनाव और बढ़ गया। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी बल तैनात किया और धारा 163 (BNSS) लागू कर दी। इस घटना ने नैनीताल के पर्यटन उद्योग को भी प्रभावित किया, क्योंकि कई पर्यटकों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दीं।
नगर पालिका का सख्त कदम: अतिक्रमण का नोटिस
घटना के बाद नैनीताल नगर पालिका ने आरोपी के खिलाफ एक और कड़ा कदम उठाया। पालिका ने दावा किया कि मोहम्मद उस्मान ने पालिका और वन विभाग की जमीन पर अवैध अतिक्रमण किया है। इसके आधार पर, आरोपी के घर को ध्वस्त करने के लिए तीन दिन का नोटिस जारी किया गया। इस नोटिस ने स्थानीय लोगों में और आक्रोश पैदा किया, क्योंकि कई लोगों ने इसे त्वरित न्याय के रूप में देखा। हालांकि, यह कदम कानूनी विवाद का कारण बन गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, अतिक्रमण हटाने से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
हाई कोर्ट का हस्तक्षेप: नोटिस पर रोक
आरोपी के वकील, डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता, ने नगर पालिका के नोटिस को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि तीन दिन का नोटिस सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है, खासकर जब आरोपी जेल में है और अपनी बात रखने में असमर्थ है। सुनवाई के दौरान नगर पालिका ने अपनी गलती स्वीकार की और नोटिस वापस लेने की घोषणा की। हाई कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए पुलिस और प्रशासन को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में सख्ती और पारदर्शिता के साथ कार्रवाई होनी चाहिए।