Uttarakhand News : धामी सरकार का आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापित करने का प्लान, खतरे में कई गांव

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Uttarakhand News : धामी सरकार का आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापित करने का प्लान, खतरे में कई गांव

 Dhami


देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड के आपदा प्रभावित गांवों के विस्थापन की नीति में बदलाव किया जाएगा। सरकार ने इसके लिए सभी जिलों से संशोधन प्रस्ताव मांगे हैं। 

अपर सचिव आपदा प्रबंधन महावीर चौहान ने यह आदेश किए हैं।राज्य के कई आपदा प्रभावित गांवों का विस्थापन किया जाना है।

इसके लिए सरकार ने 2021 में विस्थापन नीति तैयार की है, लेकिन इस नीति में कई व्यावहारिक दिक्कतों की वजह से गांवों के विस्थापन में दिक्कत आ रही है। इसे देखते हुए अब सरकार ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर विस्थापन नीति में बदलाव के लिए सुझाव देने को कहा है।

इसमें अन्य हिमालयी राज्यों की विस्थापन नीतियों का अध्ययन करने को कहा गया है। राज्य में हर साल भूस्खलन और बाढ़ की वजह से आपदा से प्रभावित गांवों की संख्या बढ़ रही है। इस परेशानी को देखते हुए सरकार ने विस्थापन नीति में समूचे गांवों की बजाए प्रभावित परिवारों के विस्थापन का निर्णय लिया है।

लेकिन 2021 की विस्थापन नीति में कई ऐसे प्रावधान हैं जिससे पहाड़ के गांवों से परिवारों का विस्थापन करना मुश्किल हो रहा है। आपदा प्रभावित परिवार को 7 लाख की सहायता राज्य में आपदा से प्रभावित परिवार को वर्तमान में 4 लाख की आर्थिक सहायता देने की व्यवस्था है।

लेकिन इसे अब सात लाख करने की योजना है। सभी जिलाधिकारियों से इस संदर्भ में भी राय देकर विस्थापन के खर्चों का अलग से आंकलन करने को भी कहा गया है।

खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं कई गांव

उत्तराखंड में आपदा से प्रभावित गांवों की संख्या 411 है। हालांकि कई ऐसे भी गांव हैं जहां पर पूरे गांव की बजाए कुछ परिवार खतरे की जद में हैं। आपदा प्रबंधन विभाग का प्रयास है कि इनमें से उन गांवों का विस्थापन सबसे पहले हो जो सबसे अधिक खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं। इसीलिए सरकार ने विस्थापन पॉलिसी तैयार की थी। लेकिन इसमें भी कुछ तकनीकी खामियों की वजह से अब दिक्कत पेश आ रही है।

मुआवजे में आ रहीं ये दिक्कतें

पहाड़ के मिट्टी के घर कई बार आपदा के मानकों पर फिट नहीं बैठते हैं। इससे लोगों को मुआवजा नहीं मिल पा रहा है। वहीं, एक ही घर में कई भाइयों के हिस्से होते हैं जो अलग रहते हैं, लेकिन नीति के अनुसार इसे एक ही परिवार माना जा रहा है। इस परेशानी को देखते हुए सभी जिलाधिकारियों से तर्क संगत प्रस्ताव देने को कहा गया है।